रिश्ते और सामान
अब सामान ही रिश्तों की पहचान हो गए
पापा का शॉल है, ओढ़ता हूं तो पास आ बैठते हैं
बाल पकने लगे तेरे, चिंता कम किया कर... बोलते हैं
हाथ का बुना स्वेटर अब मुझे फिट नहीं होता
हर बरस देखता हूं, इसे छूकर, अब भी नर्म है,
मां ने बुना था बिस्तर पर बीमारी से लड़ते हुए
पुराना धागा है हाथ में, अब तक टूटा नहीं
इस पर उंगलियां फेरता हूं तो बहन हाथ थामती है
भैया इस साल भी नहीं आए, कहकर रूठती है
दीवार पर लगी घड़ी भी सुस्त है अब
बड़े भैया ने दी थी जब वतन से चला था
अब ये वक्त पूछता है, क्यों छोड़ आए सबको?
जो आईना तुमने गोवा से लिया था,
इसमें सीपियों के बीच कुछ खाली जगह है,
याद है तुमने बिंदियां जड़ी हैं इसमें
...अब बुला लो, लौट के आना है
-कुहू
अब सामान ही रिश्तों की पहचान हो गए
पापा का शॉल है, ओढ़ता हूं तो पास आ बैठते हैं
बाल पकने लगे तेरे, चिंता कम किया कर... बोलते हैं
हाथ का बुना स्वेटर अब मुझे फिट नहीं होता
हर बरस देखता हूं, इसे छूकर, अब भी नर्म है,
मां ने बुना था बिस्तर पर बीमारी से लड़ते हुए
पुराना धागा है हाथ में, अब तक टूटा नहीं
इस पर उंगलियां फेरता हूं तो बहन हाथ थामती है
भैया इस साल भी नहीं आए, कहकर रूठती है
दीवार पर लगी घड़ी भी सुस्त है अब
बड़े भैया ने दी थी जब वतन से चला था
अब ये वक्त पूछता है, क्यों छोड़ आए सबको?
जो आईना तुमने गोवा से लिया था,
इसमें सीपियों के बीच कुछ खाली जगह है,
याद है तुमने बिंदियां जड़ी हैं इसमें
...अब बुला लो, लौट के आना है
-कुहू
Brilliant .... So life like ... So real ... Touching ...
ReplyDeleteSuperb superb ... Loved it.
ReplyDeletevery nice
ReplyDelete-sohan
Wah.bahut acche
ReplyDeleteChhote the to isi type ki kavita diary pe likkne ki koshish ki thi... aaj paad ke achha laga... bahut achha
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