Friday, January 2, 2015






तारीखें उपहार होती हैं...

हर साल कैलेंडर में लिपटी आती हैं  ... 
तारीखें उपहार होती हैं

राखी, भाई दूज, करवा चौथ, छठ... 
तारीखें रिश्तों का तार होती हैं 

होली, दिवाली, क्रिसमस, ईद....  
कुछ तारीखें त्योहार होती हैं 

स्कूल, कॉलेज, बस्ता, किताबें...
तारीखें छुट्टी का इंतजार होती हैं

जन्मदिन, सगाई, शादी, सालगिरह ... 
ये तारीखें यादगार होती हैं

 जिद्दी, अल्हड़, कच्ची पक्की आदत ...
कुछ तारीखें मनुहार होती हैं

गुलाब, गिफ्ट, मिलना, मचलना.... 
ऐसी तारीखें प्यार होती हैं 

अखबार, दूध, सब्जी, प्रेस का हिसाब...
तारीखें घर-परिवार होती हैं

दिन, हफ्ते, महीने, साल ... 
तारीखें वक्त का कारोबार होती हैं 

हर साल कैलेंडर में लिपटी आती हैं  ... 
तारीखें उपहार होती हैं

-कुहू 

Sunday, October 26, 2014




आज फिर....





 

 






नींद पलकों को छूकर गुजरी है अभी 
ख्वाब दहलीज पर ठहरे हैं आज फिर  

 बार बार गिनते रहे गुल्लक के सिक्के लिए 
चाहतें कितनी महंगी निकली हैं आज फिर 

कहना था बहुत तुमसे पर खामोश रह गए 
खुदगर्ज किस्से दिल से ना गए आज फिर 

कहा था बहुत दोस्त ना हों तो अच्छा है 
तन्हा बैठ खुद से ही बातें कीं आज फिर 

-Kuhu 


 

Sunday, April 13, 2014



कुहू डाल पर आई ...


Twitter के पन्ने पर एक नन्ही सी नीली चिड़िया कुहू जाने कब कब चहकी इसका हिसाब किताब ही नहीं रखा गया। किसी ने अचानक पूछ लिया...ये आपने लिखा है? बताएं कब लिखा? जवाब तब मिलता अगर तारीखें याद रखी जातीं। तो कुछ गुणीजनों के कहने पर #Kuhu अपने लिखे के साथ जोड़ना शुरू किया। दो लाइन ....140 वर्णों का एक समूह, जिनमें हर बात को बेहतर तरीके से रखने की कोशिश की। कभी कामयाब हुए तो कभी यूं ही पन्ने पलट लिए गए। अब बिखरी #Kuhu को ब्लॉग पर समेटा जाएगा, शुरूआत आज ही की है...


रात चांदनी से जिरह कर बैठा चांद// जिक्र तुम्हारा था, शर्त मुझ पर रखी गई    #Kuhu 



 ख्वाब सा ख्वाब दिखे, हकीकत हो हकीकत जैसी// इतनी आसान सी शर्तें भी क्यूं मंजूर नहीं होती?  #Kuhu


 वो दफ्तर की फाइलों में खोए थे और कहीं इंतजार होता रहा बच्चा दिनभर की कहानियां खुद को ही सुनाकर सो गया  #Kuhu


 ऐसे खर्च होते हैं दिन और वक्त गुजर जाता है, जैसे बच्चे की पेंसिल हुई छोटी और कॉपी भर गई  #Kuhu



सोचा गुल्लक से पूछें, कैसे खामोश है सिक्के संभालकर// हमसे तो खुशियों की खनक अकेले नहीं संभलती   #Kuhu


 उन बूढ़ी बुजुर्ग उँगलियो मेँ कोई ताकत बाकी न थी//  मगर सिर झुका मेरा तो कांपते हाथों ने जमाने भर की दौलत दे दी   #Kuhu


 जब कोहरा ढकता है शहर को 
जानी पहचानी सड़कों को 
 रोज दिखते घरों को,
तब रहता है खो जाने का डर 
और होती है बादलों पर चलने की खुशी
 #Kuhu
 


ख्वाबों के सौदे में भी होते हैं धोखे हजार// सब नींद चुरा लेते हैं ये एक सपना देकर   #Kuhu



Monday, March 10, 2014



 आवाज़ें





 आवाज़ें खिलखिलाती हैं होठों पर
जब बच्चे को मिल जाता है नया खिलौना 


 आवाज़ें मुस्कुराती हैं जहन में
जब छू जाती है हवा उसकी खुश्बू वाली

 आवाज़ें ठहर जाती हैं वक्त की तहों में
जब बिछड़ जाता है कोई साथी लंबे सफर का

आवाजें शामिल हो जाती हैं शोर में
जब मेले में कुछ पल को अलग होता है परिवार

 आवाज़ें टकराती हैं पहाड़ और चट्टानों से
जब तन्हा महसूस करता है कोई भीड़ में


आवाज़ें रोशनी बन जाती हैं अंधेरे में
जब खामोश हो जाता है कोई डरकर अकेले में

आवाज़ें जिस्म से उतारकर रख दी जाती हैं
जब खत्म हो जाती है किसी रिश्ते की मियाद

आवाज़ें मर जाती हैं बूढ़ी होकर, कांपते हुए
जब अनसुनी की जाती हैं लगातार, बार-बार

आवाज़ें फिर जन्मती हैं नन्ही किलकारियों में
तब सुकून देती हैं, बढ़ती हैं, पलती हैं, फैलती हैं


-कुहू

Saturday, October 26, 2013



क्रिसमस ट्री वाला स्वेटर




 अक्टूबर वाली गुलाबी ठंड की आहट
और मैं अपने पुराने घर में खड़ा हूं
दशहरे की छुटिट्यां और घर में शोरगुल
धूप की तरह छतों पर चढ़ते उतरते बच्चे

 अब भी छत पर पड़ी है एक चारपाई 
 यहां मां और बुआ उलझती थीं ऊन के गोलों से
जाने कैसे दो सलाईयों को लड़ाते हुए बुनती थीं रिश्ता
जाने कैसे ऊनी धागों की शक्ल निखर आती थी

उन सर्दियों में मैं खूब इठलाया था
जब मां ने बुन दिया था लाल स्वेटर
उस पर बनाया हरे रंग का क्रिसमस ट्री 
आसपास बिखेरे थे सफेद बर्फ के गोले

6 साल का था...

उसे पहन मोहल्लेभर में इतराया
गोलू की मां ने बुलाकर कई बार पूछा,
मां ने बुना है कि मोल लिया है....
जबाव पर बुनाई पूछने घर चली आई थीं

कैसी गर्माहट थी उस स्वेटर में
मां की कोमल उंगलियों से गुजरा ऊन का धागा
फंदों में प्यार बुना था क्या? 
सोचता हूं....
पत्नी को कहूं, बेटे के लिए बुन दो
लाल रंग का स्वेटर...
जिसपर बना हो क्रिसमस ट्री
-कुहू

Saturday, September 21, 2013

कितनी बार कहा ... 



कितनी बार कहा ...
सब्र हर काम में सीखो
फैसले वक्त पर ही सही होते हैं

कितनी बार कहा ... 
अपनेआप से लड़ाई कैसी 
इश्क खुद ही से शुरू होते हैं

कितनी बार कहा ... 
अंधेरों से उलझना कैसा
इनके उस पार उजाले रहते हैं
 
कितनी बार कहा ...
परों को देखना छोड़ो
ख्वाहिशों से उड़ानें होती हैं

कितनी बार कहा ....
सवालों से मत भागा करो
जिंदगी इनके जवाबों से हसीन होती है

-कुहू



Sunday, September 1, 2013

कुछ दिन पहले की खबर है, यूपी में मेरठ के पास एक ढाबे पर काम करने वाले बच्चे की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वजह जो भी रही हो पर यह सच है कि हम लगातार ऐसी घटनाओं को अनसुना कर रहे हैं...



तुम्हारी गलती थी छोटू
तुमने क्यों अनसुना कर दिया

मां ने कहा होगा, छोटा है कैसे काम करेगा
पिता ने कलेजे पर पत्थर रखा होगा
शायद मन में कुछ संदेह भी हो
बच्चा ही तो है 11 बरस का...

तुम्हारे मन में स्कूल जाने की इच्छा रही होगी
पड़ोस के बच्चों को खेलते देखा 
राह चलते शायद टोका भी होगा
कहां चल दिए काम पर, थोड़ा खेल लेते
उन्होंने हंसकर कहा होगा

तुम्हारी गलती थी छोटू 
तुमने क्यों अनसुना कर दिया

ढाबे वाले ने वादा किया होगा प्यार से काम लेगा
पर तुमने डांट भी खाई होगी
होटल का बचा खाना खाते हुए याद आई होगी मां
प्यार से बुलाती थी, अपने हाथ से खिलाती थी
पर तुमने कई बार अनसुना किया होगा

तुम्हारी गलती थी छोटू
तुमने क्यों अनसुना कर दिया

उस दिन आया था सभ्य आदमी ढाबे पर
उसे जल्दी रही होगी,  बार-बार कहा होगा
ऑर्डर लाने में देर... इतनी देर
उसने गुस्से में पिस्तौल निकाली थी
धांय-धांय ...पर तुमने कहां सुना होगा

क्या ये तुम्हारी गलती थी छोटू?

नहीं.. हमने अनसुना कर दिया छोटू

-कुहू