Saturday, October 26, 2013



क्रिसमस ट्री वाला स्वेटर




 अक्टूबर वाली गुलाबी ठंड की आहट
और मैं अपने पुराने घर में खड़ा हूं
दशहरे की छुटिट्यां और घर में शोरगुल
धूप की तरह छतों पर चढ़ते उतरते बच्चे

 अब भी छत पर पड़ी है एक चारपाई 
 यहां मां और बुआ उलझती थीं ऊन के गोलों से
जाने कैसे दो सलाईयों को लड़ाते हुए बुनती थीं रिश्ता
जाने कैसे ऊनी धागों की शक्ल निखर आती थी

उन सर्दियों में मैं खूब इठलाया था
जब मां ने बुन दिया था लाल स्वेटर
उस पर बनाया हरे रंग का क्रिसमस ट्री 
आसपास बिखेरे थे सफेद बर्फ के गोले

6 साल का था...

उसे पहन मोहल्लेभर में इतराया
गोलू की मां ने बुलाकर कई बार पूछा,
मां ने बुना है कि मोल लिया है....
जबाव पर बुनाई पूछने घर चली आई थीं

कैसी गर्माहट थी उस स्वेटर में
मां की कोमल उंगलियों से गुजरा ऊन का धागा
फंदों में प्यार बुना था क्या? 
सोचता हूं....
पत्नी को कहूं, बेटे के लिए बुन दो
लाल रंग का स्वेटर...
जिसपर बना हो क्रिसमस ट्री
-कुहू

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