Sunday, April 13, 2014



कुहू डाल पर आई ...


Twitter के पन्ने पर एक नन्ही सी नीली चिड़िया कुहू जाने कब कब चहकी इसका हिसाब किताब ही नहीं रखा गया। किसी ने अचानक पूछ लिया...ये आपने लिखा है? बताएं कब लिखा? जवाब तब मिलता अगर तारीखें याद रखी जातीं। तो कुछ गुणीजनों के कहने पर #Kuhu अपने लिखे के साथ जोड़ना शुरू किया। दो लाइन ....140 वर्णों का एक समूह, जिनमें हर बात को बेहतर तरीके से रखने की कोशिश की। कभी कामयाब हुए तो कभी यूं ही पन्ने पलट लिए गए। अब बिखरी #Kuhu को ब्लॉग पर समेटा जाएगा, शुरूआत आज ही की है...


रात चांदनी से जिरह कर बैठा चांद// जिक्र तुम्हारा था, शर्त मुझ पर रखी गई    #Kuhu 



 ख्वाब सा ख्वाब दिखे, हकीकत हो हकीकत जैसी// इतनी आसान सी शर्तें भी क्यूं मंजूर नहीं होती?  #Kuhu


 वो दफ्तर की फाइलों में खोए थे और कहीं इंतजार होता रहा बच्चा दिनभर की कहानियां खुद को ही सुनाकर सो गया  #Kuhu


 ऐसे खर्च होते हैं दिन और वक्त गुजर जाता है, जैसे बच्चे की पेंसिल हुई छोटी और कॉपी भर गई  #Kuhu



सोचा गुल्लक से पूछें, कैसे खामोश है सिक्के संभालकर// हमसे तो खुशियों की खनक अकेले नहीं संभलती   #Kuhu


 उन बूढ़ी बुजुर्ग उँगलियो मेँ कोई ताकत बाकी न थी//  मगर सिर झुका मेरा तो कांपते हाथों ने जमाने भर की दौलत दे दी   #Kuhu


 जब कोहरा ढकता है शहर को 
जानी पहचानी सड़कों को 
 रोज दिखते घरों को,
तब रहता है खो जाने का डर 
और होती है बादलों पर चलने की खुशी
 #Kuhu
 


ख्वाबों के सौदे में भी होते हैं धोखे हजार// सब नींद चुरा लेते हैं ये एक सपना देकर   #Kuhu



3 comments:

  1. मेरा तो....
    बुजुर्गों के चेहरों पर सिलवटें देकर // वक्त ने तजुर्बे की कहानियां लिख दीं #Kuhu"
    ये सबसे फ़ेवरिट है। बहोत बढ़िया बाकी सब!

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  2. बहुत ख़ूबसूरत

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