Sunday, October 26, 2014




आज फिर....





 

 






नींद पलकों को छूकर गुजरी है अभी 
ख्वाब दहलीज पर ठहरे हैं आज फिर  

 बार बार गिनते रहे गुल्लक के सिक्के लिए 
चाहतें कितनी महंगी निकली हैं आज फिर 

कहना था बहुत तुमसे पर खामोश रह गए 
खुदगर्ज किस्से दिल से ना गए आज फिर 

कहा था बहुत दोस्त ना हों तो अच्छा है 
तन्हा बैठ खुद से ही बातें कीं आज फिर 

-Kuhu 


 

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