Saturday, September 21, 2013

कितनी बार कहा ... 



कितनी बार कहा ...
सब्र हर काम में सीखो
फैसले वक्त पर ही सही होते हैं

कितनी बार कहा ... 
अपनेआप से लड़ाई कैसी 
इश्क खुद ही से शुरू होते हैं

कितनी बार कहा ... 
अंधेरों से उलझना कैसा
इनके उस पार उजाले रहते हैं
 
कितनी बार कहा ...
परों को देखना छोड़ो
ख्वाहिशों से उड़ानें होती हैं

कितनी बार कहा ....
सवालों से मत भागा करो
जिंदगी इनके जवाबों से हसीन होती है

-कुहू



Sunday, September 1, 2013

कुछ दिन पहले की खबर है, यूपी में मेरठ के पास एक ढाबे पर काम करने वाले बच्चे की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वजह जो भी रही हो पर यह सच है कि हम लगातार ऐसी घटनाओं को अनसुना कर रहे हैं...



तुम्हारी गलती थी छोटू
तुमने क्यों अनसुना कर दिया

मां ने कहा होगा, छोटा है कैसे काम करेगा
पिता ने कलेजे पर पत्थर रखा होगा
शायद मन में कुछ संदेह भी हो
बच्चा ही तो है 11 बरस का...

तुम्हारे मन में स्कूल जाने की इच्छा रही होगी
पड़ोस के बच्चों को खेलते देखा 
राह चलते शायद टोका भी होगा
कहां चल दिए काम पर, थोड़ा खेल लेते
उन्होंने हंसकर कहा होगा

तुम्हारी गलती थी छोटू 
तुमने क्यों अनसुना कर दिया

ढाबे वाले ने वादा किया होगा प्यार से काम लेगा
पर तुमने डांट भी खाई होगी
होटल का बचा खाना खाते हुए याद आई होगी मां
प्यार से बुलाती थी, अपने हाथ से खिलाती थी
पर तुमने कई बार अनसुना किया होगा

तुम्हारी गलती थी छोटू
तुमने क्यों अनसुना कर दिया

उस दिन आया था सभ्य आदमी ढाबे पर
उसे जल्दी रही होगी,  बार-बार कहा होगा
ऑर्डर लाने में देर... इतनी देर
उसने गुस्से में पिस्तौल निकाली थी
धांय-धांय ...पर तुमने कहां सुना होगा

क्या ये तुम्हारी गलती थी छोटू?

नहीं.. हमने अनसुना कर दिया छोटू

-कुहू
रिश्ते और सामान


अब सामान ही रिश्तों की पहचान हो गए
पापा का शॉल है, ओढ़ता हूं तो पास आ बैठते हैं
बाल पकने लगे तेरे, चिंता कम किया कर... बोलते हैं



हाथ का बुना स्वेटर अब मुझे फिट नहीं होता
हर बरस देखता हूं, इसे छूकर, अब भी नर्म है,
मां ने बुना था बिस्तर पर बीमारी से लड़ते हुए

पुराना धागा है हाथ में, अब तक टूटा नहीं
इस पर उंगलियां फेरता हूं तो बहन हाथ थामती है
भैया इस साल भी नहीं आए, कहकर रूठती है

दीवार पर लगी घड़ी भी सुस्त है अब
बड़े भैया ने दी थी जब वतन से चला था
अब ये वक्त पूछता है, क्यों छोड़ आए सबको?



जो आईना तुमने गोवा से लिया था,
इसमें सीपियों के बीच कुछ खाली जगह है,
याद है तुमने बिंदियां जड़ी हैं इसमें
...अब बुला लो, लौट के आना है

-कुहू

बारिश...

दूर तक आसमान नीला और धुला था जिस वक्त सुबह ने आंखें खोलीं
घरों की मुंडेरों ने बताया... कुछ देर पहले बारिश हुई थी

किसी पत्ते पर ठहरी थी खूबसूरत बूंद
इंद्रधनुष की गोलाई लिए....धीरे से आगे बढ़ी
पत्ता हिला था हल्का सा... या उसका दिल धड़का था?

बूंद बही अपनी निशानी छोड़कर,
आखिरी सिरे पर जा टिकी...
फिर कहां रुकने वाली थी चंचल बूंद

पत्ता झुककर देखता रहा धरती की ओर...
मिट्टी में उसको मिलते हुए
पत्ते और भी थे शाख पर, सब चुप रहे

 

ये खेल देखकर हवा भी देर तक थमी रही
बारिश के बाद यही होता है अक्सर

ये जीवन का चक्र कहां रुकता है

 

हवा का नर्म झौंका है...
पत्ते ने मुस्कुराकर आसमान की ओर देखा
सावन है...

बारिश फिर होगी...

-कुहू